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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. ६७ तिणे तेहिज विधि साधवा, पूजो अरिहा अंग ॥ सिझस्वरूप हृदय धरी, घोली केसररंग ॥२॥
॥ ढाल बीजी ॥ कुंबखमानी देशी॥ ॥ बीजी चंदनपूजना रे. केसरनो करी घोल ॥ प्रनुपद पूजीए॥बाहिर रंग गवेषीने रे, रंग अन्यंतर चोल ॥॥पूजीए जिन पूजीए रे, आनंदरस कबोल ॥ प्र॥१॥ ए आंकणी॥धुर पगई धुरो कर्मनी रे, बंध त्रिनंग प्रकार ॥प्र० ॥ खय उपशम गुण नीपजे रे, अमवीश उपर चार ॥ प्र० ॥२॥ त्रणसें चालीश उत्तरू रे, बहवादिक पद बार ॥॥ पूज्य विशेषावश्यके रे, नंदीसूत्र मोकार ॥ प्रण ॥३॥ बंध हेतु ते पामीए रे, मतियावरण बलेण ॥ प्र० ॥ ध्रुवबंधि प्रकृति टले रे, जब लहे खायक श्रेण ॥ प्र० ॥४॥ जिम रोहे नृप रीजव्यो रे, रीकववो एक सांई ॥ प्र० ॥ श्रीशुनवीरने श्राशरे रे, नासे कर्म बलाय ॥प्र०॥५॥
॥ काव्यं ॥ चुतविलंबितवृत्तघ्यम् ॥ ॥ जिनपतेर्वरगंधसुपूजनं, जनिजरामरणोनवनीतिहृत् ॥ सकलरोगवियोगविपहरं, कुरु करेण सदा निजपावनम् ॥ १॥सहजकर्मकलंक विनाशनै,-रम
॥ ध्रुवबंध म रोहे नृप राशरे रे,
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