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(५) ॥ श्रीपंचपरमेष्ठी मंगल स्तवनम् ॥
॥ चाल-आदि गणेश मनाया ॥ ॥ नित सिमरण कर ले पांच मंगल सुखकारी॥ अंचली ॥ अर्हन् देव प्रथम मंगल में, चउतीस अतिशय धारी ॥ प्रजुजी ॥ पैंतीस वाणी गुणे करी सोहे, धारक जिन गुण बारी ॥ नि ॥१॥ पांच वर्ण फूलोंकी वर्षा, अशोक वृक्ष सुखकारी ॥ प्रजुजी ॥ देवहुंमुनि चामर होवे, देव ध्वनि हितकारी ॥ नि० ॥२॥ नामंगल सिंहासन उत्तर, पूजातिशय नारी ॥ प्रजुजी ॥ वाग ज्ञान अपायापगम, मूल अतिशय चारी ॥ नि ॥३॥ जीवनमुक्त धर्मउपदेशक, दोष अगरां जारी ॥प्रजुजी ॥ ऐसे अर्हनू देव जिनेश्वर, नमो नमो नर नारी ॥ नि ॥४॥ श्रष्ट कर्मको दग्ध करीने, सिक ऊर्ध्व गति धारी ॥प्रजुजी ॥ झान दर्शन सम्यक्त्व अरूपी, अगुरु लघु बल जारी ॥ नि॥५॥ अव्याबाध अक्षय स्थिति यह गुण, सिझ आठ मनोहारी ॥ प्रजुजी ॥ फुजे मंगल सिक महाराजा, नमो नमो नर नारी ॥नि॥६॥डी पांचको दमन करीने, पाले पांच श्राचारी ॥ प्रजुजी ॥ ब्रह्मचर्य नव गुप्ति धारे, चार
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