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________________ ५७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. कृष्णागरु लेमलय मनोहर, मृगमद मांहे नेली ॥ धूप उखेवी माग तुं जिनपे, नरक तणी गति तेली जिनकी० ॥२॥ नविक नरे जिनवर एम पूज्या, सवि सामग्री मेली ॥ चौदमी पूजा एणी परे करतां, श्रापे शिवपद केली ॥ जिनकी ॥३॥ ॥काव्यं ॥ नवजाटत्तम् ॥ ॥ कर्पूरकालागरुगंधधूप,-मुत्दिप्य धूमबलपूरितैनाः॥ घंटानिनादेन समं सुरेंज,-श्चतुर्दशीमातनुते स्म पूजां ॥ १ ॥ इति धूपपूजा चतुर्दशी ॥ १४ ॥ ॥अथ पंचदश गीतपूजाप्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥ पन्नरमी पूजा गीतनी, तास कथा पत्नणेश ॥ नाव पूजानो नाव ए, टाले सकल कलेश ॥१॥ तान मान लय ध्यानथी, पालापे सवि राग ॥ अति अनुत गुण कीर्तना, करीए धरी बहु राग ॥२॥ ॥रांग देशाख ॥ ॥कमलदललोचनी, विरहःखमोचनी, सुंदरी जिन तणां गीत गावे॥निज मुखे गुण गहे, कोकिला खर कहे,श्रवण रस जणी तव, ७ श्रावे॥राग सवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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