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________________ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ काव्यं ॥ नपेंद्रवज्रावृत्तम् ॥ - ॥ कराग्रमुक्तैः किल पंचवर्णै - रग्रंथपुष्पैः प्रकरं पुरोSस्य ॥ प्रपंचयन् वंचितकामवीरः, स द्वादशी मातनुते स्म पूजां ॥ १ ॥ इति पुष्पपगरपूजा द्वादशी ॥ १२ ॥ ॥ अथ त्रयोदश प्रष्ट मंगलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ५६ ॥ तेरमी पूजा स्वामीनी, रचवां मंगल आठ ॥ यतनां श्रालेखवां, जिन सन्मुख शुभ वाव ॥ १ ॥ स्वस्तिक श्रीवत्स कुंज वली, जद्रासन शुभ जाण ॥ नंदावर्त्त ने मीनयुग, दर्पण ने वर्द्धमान ॥ २ ॥ मंगल विरची जात्री ए, शुद्धतम मंगलिक ॥ अष्ट सिद्धगुणने वरं, शासय सुख निर्जीक ॥ ३ ॥ अक्षय सुखने कारणे, अतना करी थाप ॥ ऋष्ट कर्मने दय करे, गाले सकल संताप ॥ ४ ॥ ॥ गाथा आर्या बंद ॥ ॥ श्रय मंगल पूजा, किजई जावेण जिणवराणं ॥ निय गेहे होइ सोहं, जह काले मेहबुद्धिय ॥ १ ॥ ॥ गीत ॥ राग गुर्जरी ॥ ॥ बनी पूजा तेरसमी नीकी, मंगल घाव बबील सो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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