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________________ ५२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम लयं तं ॥ महाध्वजं कीर्तिमिव प्रतत्य, पूजामकार्षीन्नवमीं विडौजाः ॥ १ ॥ इति ध्वजपूजा नवमी ॥ ॥ ॥ गीत ॥ राग नह नारायण ॥ ॥ इमे प्रभु दीजे हो वरदान, याचक जविक कहत हे तुमशुं ॥ जेम पामो जगमान ॥ हमे० ॥ १ ॥ पूजत जिनवर दानज देतां, जोवत हो क्युं पूंठि ॥ नव यनंद कनकगिरिसंचित, तेन गये जर मूवी ॥ हमे० ॥ २ ॥ रूप सुवर्ण नाण वर वास, वांबित फल दीयो खामी ॥ एही अवसर मत होय अदाता, सेवक कहे शिर नामी | हमे० ॥ ३ ॥ इति दानं ॥ ५ ॥ ॥ अथ दशम आमरणपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दशमी पूजा देवनी, बहु श्रानरणनी होय ॥ अलंकार पहेरावी ये, जावन जावो सोय ॥ १ ॥ अनलंकारे सुजग ए, आत्मजाव अलंकार ॥ तोपण नक्तिउल्लासने, कारणे एड् विचार ॥ २ ॥ षणे भूषित स्वामीने, देखी हरखो जव्य ॥ जिनमुद्रा शुद्ध तत्त्वमी, वीतराग गुण सव्य ॥ ३ ॥ वीतरागना गुण वधे, देखी श्री जिनबिंब ॥ निज स्वरूप निज जावमां, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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