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५० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. धरी शुझातम प्रेम ॥२॥ अष्ट महा मद गालवा, टालवा आवे जीति ॥ श्रष्ट प्रवचन मातने, पालवा श्रधिकी प्रीति ॥३॥अम दिही अनुक्रमे वधे, लहे दायिक समकित ॥ आठमी पूजा जे करे, नाव धरी नवि नित ॥४॥ श्रझा जासन रमणता, पामे सहजानंद ॥॥ तत्त्व रमणतादिक बहु, प्रगटे निज गुणवृंद ॥ ५ ॥ जावघटा मेरी उण्हई, वरसे जिनपद श्रृंग ॥ घनसारह धारा करी, पूजो अरिहंत अंग ॥६॥
॥ गीत ॥ राग सारंग ॥ ॥ वरसेजी मेरी जावघटा, जिनके चरणकमल गिरि नपर, चूर्ण सुगंध उटा ॥ वरसेजी ॥ धनसारादिक सरस मनोहर,कर ग्रही सुगंधपूटा॥दीनदयाल कृपालकुं पूजित, पुलकति अलक लटा॥वरसेजी ॥१॥ मागत हुँ हवे अष्टमी पूजा, तोरो मेरी कर्म जटा॥ मनसारंगे सेवक जंपे,अदर ए प्रगटावरसेजी॥२॥
॥काव्यं ॥ नपेत्ववादृत्तम् ॥ ॥दनोलिपाणिः परिमर्य सद्यः, करिफालीबहुजक्तिशाली ॥ चूर्णं मुखे न्यस्य जिनस्य तूर्ण, चक्रेऽष्टमं पूजनमिष्टहेतुं ॥ १॥ इति चूर्णपूजाऽष्टमी ॥७॥
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