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________________ ४६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. सुगंधि॥३॥वारे मिथ्यावासना, चूरे पुजल व्याधि ॥ पूरे वांबित कामना, थाये पूर्ण समाधि ॥४॥ चेतनता निर्मल हुए, पामे केवलज्ञान ॥ यश सुवास जग विस्तरे, लहे निर्वाण सुथान ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीमितत्तम् ॥ ॥गंधाढ्यैः कुसुमैर्नवैस्तु विरलैः पूजां करोति प्रनो;, नक्त्या योऽपि हरिप्रिया मिहनवे तस्य प्रसन्नो जवेत्॥ सौख्यं सर्वनवांतरेषु लनते सान्निध्यमास्थीयते, कुत्रान्यत्र सुधां विहाय गरलं पातुं क श्वेन्नरः॥ १॥ ॥ गीत ॥ राग वेलावल ॥ ॥मोकले कुसुमे करी,अरचा स्वामीनी ॥ मिथ्यात्व शिरसि, उस्सहदामिनी ॥ मोकले ॥ १॥ जगगुरु तव पूजा नविकने, मोहन कामिनी ॥ अनिनवा कुमतिने, चकवाकुल यामिनी ॥ मोकले॥२॥नरक दरद प्राचीन बहु, आवत थांनिनी ॥ पूजा पंचमी जविकने, वेलावल दायिनी ॥ मोकले ॥३॥ ॥ काव्यं ॥ नवजाटत्तम् ॥ ॥ मंदारकरूपमपारिजात-जातैरविवातकृतानु. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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