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________________ ५४ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ काव्यं ॥ नपेंद्रवज्ञावृत्तम् ॥ ॥ च्युतं शशांकस्य मरीचि जिः किं, दिव्यांशुक इमती व चारु ॥ युक्त्या निवेश्यो जयपार्श्वमिंद्र:, पूजां जिनेंदोरकरो तृतीयां ॥ १॥ इति वस्त्रयुगलपूजा तृतीया ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थ वासपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सम्यक् ज्ञानादिक गुणे, वासित थाये आप ॥ करतां पूजा वासनी, जाये सर्व संताप ॥ १ ॥ कुमति जवासा शोषवे, टाले मिथ्या पास । शिवपुरमां वासो वसे, जो जिन पूजे वास ॥ २ ॥ शुद्धतमनी वासना, जासन जास्कर ज्योत ॥ अरिहंत वास उपासना, जवजल तारण पोत ॥ ३ ॥ राधे अनुशासना, वाधे जग यश वास ॥ साधे मारग मोनो, वासे अर्चेपास ॥ ४ ॥ ॥ राग केदारो ॥ ॥ सुरनि वस्तु सवि मेली, कुंकुम केसर नेली, कुसुमे वासित ए, रंगे राजित ए, वासे पूजो अंग, पामो शिवसुख रंग, जिनवरने नमो ए, जैम जग नवि जमो ए ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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