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दादासाहेबनी पूजा. ५०३ कहत रामज्ञहिसार गुरुकी जय जय शब्द उचारी ॥ सु ॥ ए ॥ इति श्रीसमस्तदादागुरुपूजा संपूर्णा ॥
॥ अथ आरति लिख्यते ॥ ॥जय जय गुरु देवा आरति मंगल मेवा आनंद सुख लेवा ॥ ज०॥श्रांकणी॥श्क व्रत ज्य व्रत तीन चार व्रत पंच व्रतमें सोहे॥ गु०॥ जगत जीव निसतारण सुर नर मन मोहे ॥ ज० ॥ १॥ पुःख डोह सब हर कर सद्गुरु राजन प्रतिबोधे ॥ सुत लखमी वर देकर श्रावककुल शोधे ॥ ज० ॥२॥ विद्या पुस्तक धर कर सशुरु मुगलपूत तारे ॥ वश कर जोगन, चौसठ पांच पीर सारे ॥ ज० ॥३॥ बीज पमंती वारी ससुरु समंदर जहाज तारी ॥ वीर कीये बस बावन प्रगटे अवतारी॥ज ॥४॥ जिनदत्त जिनचंद कुशल सूरि गुरु खरतरगड राजा ॥ चोराशी गट्ठ पूजे मनवांबित ताजा ॥ ज०॥५॥ मन शुद्ध भारती कष्ट निवारण सारुकी कीजे ॥ जो मांगे सो पावे जगमें जस लीजे ॥ ॥ज०॥६॥ विक्रमपुरमें जगत तुम्हारो मंत्र कलाधारी ॥ नित उठ ध्यान लगावत मनवांडित फल पावत रामशरू सारी ॥ ज० ॥ ७॥ इति पद ॥
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