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________________ श्रीसत्तरभेदी पूजाध्यापन विधि. ४६७ कुमारिकार्ड अथवा समान अवस्थावाली सधवा स्त्री अथवा एकली कुमारिकार्ड सुंदर वस्त्र यानूपण पहेरी, प्रजुनी सन्मुख उनी रही, शंका कांदा रहित नाटक करे. कदापि स्त्रीउनो योग न बने तो समान अवस्थावाला पुरुष मली नाटक करता थका मुख थकी सोलमी पूजानो पाठ जणे, ते जणीने सोलमी पूजा करे. पछी मद्दल, कंसाल, तबल, ताल, जांज, वीणा, सतार, तूरी, मेरी, फेरी, डुंडुनि, शरणा, चंग, नफेरी प्रमुख सर्व जातिनां वाजित्र वजावता थका मुख थकी सत्तरमी पूजानो पाठ जणे, ते जणीने सत्तरमी पूजा करे. पठी धारति करे तेनो विधि कहे वे पूजा जणी रह्या पठी सर्व वस्त्र प्रमुख पहेरी उत्तरासंग करे, पठी प्रभुथी अंतपट करी पोताने ललाटे कुंकुमनुं तिलक करे, पी अंतर्पट दूर करी, रकेबी मां स्वस्तिक करी मांहे रूपानाएं, तंडुल, सोपारी धरे, पी आरति, दीपक साथै संयोजी ने प्रजुनी सन्मुख दक्षिपावर्त्तथी सर्व वाजित्र वाजतां श्रारति करे, तेनो पाठ लखीए ठीए ॥ इति सत्तरभेदी पूजाविधिः ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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