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________________ श्रीदेवचंदजीकृत स्नात्रपूजाविधि. ४५३ शुरू करी, नवीन वस्त्र पहेरी, खनाल तिलक करी, बाजोग्नी स्थापना करी, ते उपर बाजोउ मांमी, स्नानपीठ उपर थालनी स्थापना करवी, ते उपर तंडुलनी ढगली करवी ॥ तेनी उपर रूपानाएं तथा नालीयेर धरीने पनी स्नात्रीयाए पोताने हाथे मौलीसूत्र बांधवं, तथा बीजा कलश प्रमुख स्थानके मौली बंधन करी, कलशाने धूप दक्ष, उध, दधि, घृत, जल तथा शर्करा, ए पंचामृतथी कलश नरी राखवा. पठी मुखकोश बांधी मूलनायकजी पागल थावी नमस्कार करी अने धूपधाएं हाथमां लक्ष धूप उखेववो ॥ ते समये मुखथी धूपावलीनी गाथा कहेवी, ते या प्रमाणेः असुरिंदसीरंदाणं, किन्नर गंधव चंद सुराणं ॥ विद्याहरा सुराणं, सजोगा सिद्धाण सिझाणं ॥१॥ मुनिय परमन विबर, गियन विविह तव सोसियंगाणं॥ सिफिवहु निप्पर, छियाणं जोगीसराणं च ॥२॥ जंपूयाय जगव, तिबयरा राग रोस तम रहिया ॥ विषय पणएण तेसिं, समुह मे श्मे धू ॥३॥ तिबंकर पमिमाणं, कंचण मणि रयण विहुममयाणं ॥ तिहुयण विनूसगाणं, सासय सुर नर कयाणं च Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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