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________________ ४४७ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. लब्धिपात्र जयवंतो जी ॥५॥नवपद्धव जिन महिमासागर, आगर तणो नंमारो जी ॥ इकागवंस तिहुयण मनरंजण, जिनशासन सिणगारो जी॥६॥ नणे व नंमारी श्रम मन, वसीयो श्रीअरिहंतोजी।। नील वरण तनु महिमासागर, जय जयन नगवंतो जी ॥७॥ इति श्रीपार्श्वनाथकलशः संपूर्णः ॥ ॥अहीं स्नातस्याप्रतिमस्य ए श्लोक, आ चोपमीना पृष्ठ ( ३०० ) मां ने ते कहीने कलशानिषेक करीए. पली दूध, दधि, धृत,जल अने शर्करा, ए पंचामृतनी पखाल करी पड़ी पूजा करीए॥ ॥मोघर लाल गुलाब मालती, चंपक केतकी वेली॥ कुंद प्रियंगु नागवरजाति, बोल सिरि शुचि मेली ॥ मो० ॥ १॥ जूमंमल जल मोकले फूले, ते पण शुद्ध अखंडी ॥ जिनपदपंकज जेम हरि पूजे, तिण परे जवि तुमे मंमी ॥ मो० ॥२॥ गीतं ॥ पारग तेरे पदपंकज पर, विविध कुसुम सोहे ॥ रनकुं हे आक धतुरे, तुम समो नवि कोहे ॥ पा ॥१॥ विविध कुसुमजाति सोहे, पांचमी पूजा पूजे ॥ तव नविजन रोग सोग, सवि उपजव भ्रूजे ॥पा॥२॥ शति देवपालकविकृता स्नात्रपूजा संपूर्णा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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