SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ ढाल ३ जी॥ राग केरबो, तुमरी॥ ( सहसफणा मोरा साहेबा, तोरी शामरी सुरत पर वारी जा रे ॥ ए चाल ॥) ॥ ध्यावो ध्यावो अरिहंतपद ध्यावो रे, एकाग्र लय दिल लाइए ॥ अव्य गुण पर्याये समरो, ध्याता ध्येय बन्नेद निपाइए रे ॥ ए॥१॥दीण घाति चन चेतन अव्य, गुण ज्ञानादि पूरण ध्याइए रे॥ए। ॥२॥ जन्म दीदा केवल पर्याये, ध्याश्अरिहंतरूपी थाश्ए रे ॥ ए॥३॥ ज्ञान नये श्रीवीर वचन ए, परिणामी परिणति एक ताइए रे ॥ ए० ॥४॥ बातम कि मिले सवि श्राश्, जस वृद्धि गंजीर सुख पाइए रे ॥ ए० ॥५॥ ॥ द्रुतविलंबितत्तं ॥ ॥ सकलसद्गुणपादपसेचनं, निखिलमोहमलिमषदालनं, नवपदात्मकचक्रसमर्चनं, जवतु नव्यजने शिवकारणं ॥ हीं परमपुरुषाय सर्वात्मखरूपाय श्रीसिद्धचक्राय जलं चंदनं पुष्पं धूपं दीपं अदतं फलं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ ॥एपाठ सर्व पूजाए कहेवो॥इति अरिहंतपदपूजा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy