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श्रीगंजीर विजयकृत दशविध यतिधर्मपूजा. ३७५ प्रशमरस जीनी विषय नदीनी, अखीया अमृत कयारी ॥ अहो जिन० ॥ ३ ॥ र सहस्र सहाय न जोवे, क्षमा नीशितासि धारी ॥ क्षमा रंगी असंगी प्रजुकी, बलैयां क्रोड हजारी ॥ अहो जिन० ॥ ४ ॥ कर्म कटक विकट किम चूरो, कुरो क्रोधकी यारी ॥ निरारंभ मुखकमल प्रसन्न, दमा हे अजब डुल्लारी ॥ अहो निज० ॥ ५ ॥ चिद्यन रंगी शिववधू संगी, अद्भुत चरजकारी ॥ रिद्धि वृद्धि पूरण महिमा, गंजीर गुणी हितकारी ॥ श्रहो जिन० ॥ ६ ॥ ॥ श्लोक ॥
॥ सकलकर्म कलंक निवारकं, दशविधं यतिधर्मप्रदायकं ॥ निबिडकर्मवनानलसन्निनं, प्रणत नव्य सदा जिननायकं ॥ १ ॥
॥ ॐ श्री परम० ॥
॥ अथ द्वितीय पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
॥ क्रोधानाव कमा कही, मान बते नव होय ॥ मानने संगत क्रोधनी, मान तजो प्रभु जोय ॥ १ ॥
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