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________________ ३४० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम ॥ अथ नवपदकाव्यानि प्रारभ्यन्ते ॥ ॥ तत्र प्रथम श्री अरिहंतपद काव्यम् ॥ इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ॥ नियंतरंगा रिंगणे सुनाणे, सप्पामिदेराइ सयप्पदाणे ॥ संदेहसंदोदरयं दरंतो, काएद निच्वंपि जिणे रदंतो ॥ १ ॥ ॥ ॥ श्री सिद्धपदकाव्यम् ॥ कम्मावरण पमुक्के, अनंतनाणाइ सीरीचक्के ॥ समग्गलोगग्ग पयचसिदे, फाएद निच्चं पि समग्गसिदे ॥ २ ॥ ॥ श्रीश्राचार्यपदकाव्यम् ॥ ॥ सुतसंवेगमयं सुरणं, संनी रखीरामय विसुपणं ॥ पीनंति जे ते नवनायराए, फाएद निच्चपि कयप्पसाए ॥ ३ ॥ ॥ श्रीउपाध्यायपदकाव्यम् ॥ ॥ ननं सुहं नहि पीया न माया, जे दंति जिवान्दिसूरी सपाया ॥ तम्हाहु ते चैव सया जजेद, जं मुस्क सुकाई बहु सदेह ॥ ४ ॥ ॥ श्री साधुपद काव्यम् ॥ ॥ खंतेय दंतेय सुगुत्तिगुत्तो, मुत्तेय संते गुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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