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श्रीधर्मचंद्रजीकृत नंदीश्वरद्वीपपूजा.
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चैत्य दीठ ॥ मन० ॥ अरिहंतनी प्रतिमा सार ॥ मन० ॥ लोकपाल सघला तिहां मली ॥ मन० ॥ करे निषेक कड़े तार ॥ मन० ॥ ८ ॥ तेम श्रावक मनरंगशुं ॥ मन० ॥ जिनवरने करो अभिषेक ॥ मन० ॥ कहे धर्मचंद्र जिन पूजतां ॥ मन० ॥ पामीए शिवगतिने एक ॥ मन० ॥ ए ॥ काव्यं ॥ स्नात० ॥ ॥ इति पंचमानिषेके पंचम पूजा समाप्ता ॥ ५ ॥ ॥ अथ षष्ठ पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ चंद्रकला बमण कर्या, होय रतिकर मान ॥ तिहां जिनचैत्ये मूरति पांचसें धनुष्य प्रमाण ॥ १ ॥ जुवनपति व्यंतर तथा, ज्योतिषीना वली देव ॥ वैमानिक सुरवर इहां, करे जिनवरनी सेव ॥ २ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ राग सारंग ॥
॥ जिनराज पूजी लाहो लीजीए ॥ ए श्रकणी ॥ ॥ शिवसुखनो निलाष करो तो, जिनयाणा शिर वहीजीए ॥ जिन० ॥ वाव्य वाव्यना अंतर वच्चे, रतिकर दो दो लही जी ए ॥ जिन० ॥ १ ॥ दश सहस्स जोयण लांबा पहोला, एक सहस्स उंचा कहीजीए ॥ जिन० ॥ पद्मराग मणिनां जे दीपे, जलरी -
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