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३६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. सुर सारे,करवा जवजय पूर जीरे॥कहे धर्मचं जिन थनिषेक, नवि करो वाजते तूर ॥जि०॥७॥काव्यं॥ स्नात०॥ इति तृतीयानिषेके तृतीय पूजा समाप्ता ॥३॥ ॥अथ चतुर्थ पूजा प्रारंनः ॥
॥दोहा ॥ ॥ शानवनी उत्तर दिशे, अंजनगिरिए आय ॥ करे उत्सव अहाश्ना, जिनगुण रंगे गाय ॥१॥
॥ढाल पांचमी॥ ॥ महारी सहि रे समाषी ॥ ए देशी॥ ॥ उत्तर दिशे अंजन गिरि नाम, कह्यो रमणिक अनिराम रे॥धन धन जिनवाणी, जेमां सर्वनी संख्या वखाणी रे ॥धन ॥ए आंकणी॥ तिहां चैत्ये एकसो ने श्रा, पमिमा ए सूत्रमा पारे॥धन॥१॥नाग नूत यद ने आशाधर, ए दो दो प्रजु दीअमर रे ॥ धन ॥ प्रतिमा आठ ए विनय करती, प्रतिमा दोय चमर विऊंती रे॥धन॥॥प्रनु पूंठे एक बत्रधर जाणो, ए सासय जावे वखाणो रे ॥धन ॥ हवे पूजा उपकरण कहीए, श्राठे अधिक सो लहीए रे॥ धन ॥३॥ जे अष्ट मंगल फूलनी दाम, कुंज ध्वज दर्पण श्रनिराम रे॥धनम्॥ पुप्फ चंगेरी बत्र भंगार,
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