________________
श्रीधर्मचंद्रजीकृत नंदीश्वरछीपपूजा. ३०१ ॥सुरमनमधुकर जश्वस्या रे, प्रजुपद कमले अपार ॥ स ॥ ह ॥ १॥ सो कोमि ने त्रेसठ वली रे, जोयण चोराशी लाख ॥ स० ॥ पहोलपणे छीप आग्मो रे, सूत्रमा जेहनी साख ॥ स ॥ ह ॥ २॥पूर्व दिशे मध्य नागमा रे, गिरि अंजन देवरमण ॥ स ॥ चोराशी सहस्स ते जोयणा रे, जंचो कहे श्रमण ॥ स ॥ ह० ॥३॥ हजार दश नीचे उपरे रे, जामपणुं एक सहस्स ॥ स ॥ सहस्स जोयण कंद रे, सहीए गुरुथी रहस्य ॥ स० ॥हा॥४॥ बसें एकत्रीश सहस्स डे रे, उपर त्रेवीश जाण ॥ स० ॥ अधो परिधिना ए जोयणा रे, अंजनगिरिनां प्रमाण ॥ स ॥ ह ॥५॥त्रण सहस्स एकसो बासरे, जे ऊर्ध्व परिधिना होय ॥ सम्॥ जगतारक थरिहा विना रे, कही न शके ते कोय॥ स०॥ ह॥६॥ जे देवरमणे चैत्य ने रे, जंचुं बहोंतेर जोयण ॥ स० ॥ सो जोयण लांबुं पहोवू रे, पञ्चास ए प्रजुवयण ॥ स० ॥ ह ॥ ७॥ चउबारो माण रत्ननो रे, सूत्रमा कहे नगवंत ॥ स० ॥ देव नामे पूर्व हार जे रे, तिहां देव गुणवंत ॥स॥हण ॥७॥ दक्षिणे असुर देवता रे, पछिम उत्तर जाण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org