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________________ शएत विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. निज व्यक्ति रे॥९॥०॥५॥पांचनेद ज्ञानना रे लाल, तेह आराधे जेह रे॥ हुं ॥सागरचंड परे प्रजु हुवे रे लाल, सौजाग्यलक्ष्मी गुणगेह रे ॥ हुं० ॥प्र॥६॥इति अजिनवज्ञानपूजाऽष्टादशी ॥१७॥ ॥अथ एकोनविंशति श्रुतपदपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वक्ता श्रोता योग्यथी, श्रुत अनुनवरस पीन ॥ ध्याता ध्येयनी एकता, जय जय श्रुतसुख लीन ॥१॥ ॥ ढाल ॥ अविनाशीनी सेजमीए रंग, लागो मोरी ___ सजनीजी ॥ए देशी ॥ ॥ श्रुतपद नमीए नावे नविया, श्रुतडे जगत्वाधारजी॥ःसम रजनी समये साचो,श्रुतदीपकव्यवहार ॥ श्रुतपद नमीएजी॥१॥ए शांकणी ॥बत्रीश दोष रहित प्रजुआगम,आठ गुणे करी जरीयुंजी॥अर्थथी अरिहंतजीए प्रकाश्यु, सूत्रथी गणधर रचीयुं॥श्रुण ॥२॥गणधर प्रत्येकबुझे गुंथ्यु,श्रुतकेवलीदश पूर्वीजी। सूत्र राजा सम अर्थ प्रधान, अनुयोग चारनी ऊर्वी ॥ श्रु०॥३॥ जेटला अक्षर श्रुतना जपावे, तेटलां वर्ष हजारजी ॥ स्वर्गनां सुख अनंतां विखसे, पामे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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