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श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. २७५ वर्ष संयमना पर्यायमां, अनुत्तरनां हो सुख अतिक्रम होय ॥शुक्ल शुक्ल परिणामयी,संयमथी हो क्षणमा सिकि जोय ॥ चा ॥५॥ सर्व संवर चारित्र लही, पामे अरिदा हो सहि मुक्तिनुं राज ॥ अनंतर कारण चरण डे, शिवपदनु हो निश्चय मुनिराज ॥ चा० ॥६॥ सत्तर नेद संयम तणा, चरण सित्तरी हो कही आगम मांहि ॥ वरुणदेव जिनवर थयो, विजयलक्ष्मी हो प्रगटे उत्साही ॥ चा० ॥ ॥ इति चारित्रपदपूजा एकादशी ॥११॥ ॥ अथ घादश ब्रह्मचर्यपदपूजा प्रारंनः ॥
॥ दोहा॥ ॥ जिनप्रतिमा जिनमंदिरां, कंचननां करे जेह॥ ब्रह्मवतथी बहु फल लहे,नमो नमो शीयल सुदेह ॥१॥ ॥ ढाल ॥ क्युं जाणुं क्युं बनी श्रावही ॥ ए देशी ॥
॥ब्रह्मचर्यपद पूजीए, व्रतमा मुकुट समान हो विनीत ॥ शीयल सुरतरु राखवा, कही नव वाम नगवान् हो विनीत ॥ नमो नमो बंनवयधारिणं ॥१॥ए आंकणी ॥कृत कारित अनुमति तजे,दिव्य औदारिक काम हो
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