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________________ श्रीवीरविजयजीकृत नवाणुंप्रकारी पूजा. २६७ ॥ ढाल ॥ धन्य धन्य जिनवाणी ॥ ए देशी॥ ॥ एम केश सिद्धि वस्या मुनिराया, नामश्री निर्मल काया रे॥ए तीरथ तारु॥जाली मयाली ने उवयाली, सिझा अनशन पाली रे ॥ ए० ॥१॥ देवकी षट् नंदन यहां सिझा, श्रातम उज्ज्वल कीधा रे ॥ ए० ॥ उज्ज्वल गिरि महापद्म प्रमाणो, विश्वानंद वखाणो रे ॥ ए० ॥२॥ विजयन ने इंस प्रकाशो, कहीए कपर्दी वासो रे॥ए॥मुक्ति निकेतन केवलदायक, चर्चगिरि गुणलायक रे॥ए॥३॥ ए नामे जय सघला नासे, जयकमला घर वासे रे ॥ ए० ॥ शुक राजा निज राज्यविलासी, ध्यान धरे षट् मासी रे ॥ ए॥४॥ अव्यसेवनथी साजा ताजा, जेम कूकडो चंद राजा रे ॥ ए० ॥ ध्याता ध्येय ध्यानपद एके, जावधी शिवफल टेके रे ॥ए ॥५॥ मालने ठंमी ब्रह्मने वलगो, जाण न थाये श्रलगो रे ॥ ए० ॥ मूल ऊर्ध्व अध शाखा चारे, बंदपुराणे विचारे रे ॥ ए० ॥६॥ इञ्जिय मालां विषय प्रवालां, जाणंता पण बाला रे ॥ ए० ॥अनुनव अमृताननी धारा, जिनशासन जयकारा रे ॥ ए॥७॥ चार दोष किरिया बंमाणी, योगा Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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