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________________ २५० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम ॥ अथ ॥ गीतं ॥ राग पूर्वी ॥ घमी घमी सांजरो सां सलूपा ॥ ए देशी ॥ ॥ नित नित सिद्ध नजो जवि जावे, रूपातीत जे सहज खनावे ॥ नित० ॥ ज्ञान ने दर्शन दोय विलासी, साकार उपयोगे शिव जावे ॥ नि० ॥ १ ॥ कर्म वियोगी योगी केरे, चरम समय एक समय सिधावे ॥ नि० ॥ निश्चय नयवादी एम बोले, व्यवहारे समयांतर लावे || नि० ॥ २ ॥ अगुरुलघु अवगाहनरूपे, एक अवगाद अनंत वसावे ॥ नि० ॥ फरसित देश प्रदेश संखा, सुंदर ज्योतसें ज्योत मिलावे ॥ नि० ॥ ३ ॥ श्रधिव्याधि विघट्या जव केरा, गर्जावास तणां दुःख नावे ॥ नि० ॥ एक प्रदेशमां सुख अनंतुं, ते पण लोकाकाशे न मावे ॥ नि० ॥ ४ ॥ परमातम रमणीनो जोगी, योगीश्वर पण जेहने ध्यावे ॥ नि० ॥ फलपूजार्थी ए फल पावे, श्रीशुजवीर वचनरस गावे ॥ नि० ॥ ५ ॥ इत्यष्टम फलपूजा समाप्ता ॥ ॥ अथ कलश ॥ ॥ गायो गायो रे, महावीर जिनेश्वर गायो ॥ श्रागमवाणी अमीय सरोवर, जीलत रोग घटायो ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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