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________________ श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश श्रागमनी पूजा. २४१ केत॥४॥ दर्शनथी जो दर्शन प्रगटे, विघटे जवजल पूरजी ॥ नावकुटुंबमें मंदिर महाबु, श्रीशुनवीर हजूरजी ॥ केत० ॥५॥ इति तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंजः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ आज पयन्ना डे घणा, पण लही एक अधिकार ॥ दश पयन्ना तेणे गण्या, पीस्तालीश मकार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ साचं बोलो शामलीया ॥ ए देशी ॥ ॥ एक जन श्रुतरसीयो बोले रे॥हो मनमान्या मोहनजी ॥ प्रजु ताहारे नहीं कोय तोले रे ॥ हो मन ॥ अमे धूपनी पूजा करीए रे ॥ हो ॥ पुगंध अनादिनी हरीए रे ॥ हो ॥१॥ तुम दर्शन लागे प्यारं रे ॥ हो० ॥ अंते ने शरण तुमारं रे॥ हो॥ चनसरण पयन्नु पहेलु रे ॥ हो ॥ श्रमे शरण कह्यु वदेवं रे ॥ हो ॥२॥लही अर्थ मनोपम रीफुरे ॥ हो॥ आउरपञ्चकाण ते बीजुं रे॥ हो॥ सांजलतां जक्तपरिज्ञा रे॥ हो० ॥ परिहरगुंचारे संज्ञारे ॥ हो ॥३॥ संथारा पयन्नो सीधो रे ॥ हो० ॥ वि.58 Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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