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________________ २३८ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम॥ दोहा ॥ ॥ निर्युक्ति प्रतिपत्ति, सघले ते समजाव ॥ बीजी अर्थप्ररूपणा, ते सवि जुजुया नाव ॥ १ ॥ ॥ अथ गीतं ॥ कुंबखमानी देशी ॥ ॥ ज्ञाताधर्म वखाणीए रे, दश बोल्या तिहां वर्ग ॥ प्रभु उपदेशीया ॥ जं ते कोमी कथा कही रे, सांजलतां अपवर्ग ॥ प्र० ॥ १ ॥ उगणीश अध्ययने करी रे, वे श्रुतखंध सुजाव ॥ प्र० ॥ उपासकदशांगमां रे, दश श्रावकना जाव ॥ प्र० ॥ २ ॥ अंतगडे म वर्ग बे रे, अणुत्तरोववाई त्रण वर्ग ॥ प्र० ॥ एक सूत्रे मुक्ति वरया रे, बीजे गया जे सर्ग ॥ प्र० ॥ ३ ॥ प्रश्नव्याकरण सूत्रमां रे, दश अध्ययन वखाण | प्र० ॥ सूत्र विपाके सांजलो रे, वीश अध्ययन प्रमाण ॥ प्र० ॥ ४ ॥ बे श्रुतखंधे जाखीया रे, दुःख ख केरा जोग ॥ प्र० ॥ एम एकादश अंगनी रे, नति करो गुरुयोग ॥ प्र० ॥ ५ ॥ श्रागमने यवबतां रे, उलखीए अरिहंत ॥ प्र० ॥ श्रीशुनवीर ने पूजतां रे, पामो सुख अनंत ॥ प्र० ॥ ६ ॥ इति द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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