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________________ २५६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ काव्यं ॥ श्रमासंयुतम् ॥१॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ ॐ ही श्री परम० ॥ दर्पणं य० ॥ स्वा० ॥ ॥इति नवमसामायिकवते दशम दर्पणपूजा समाप्ता॥ ॥ अथ दशमव्रते एकादश नैवेद्य पूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ विग्रहगति पूरे करी, आपो पद श्रणाहार ॥ श्म कही जिनवर पूजीए, उवी नैवेद्य रसाल ॥१॥ ॥ ढाल ॥ तेजे तरणिधी वमो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ दशमे देशावका शिके रे, चउद नियमसंखेप॥ विस्तारे प्रनु पूजतां रे, न रहे कर्मनो लेप हो जिनजी ॥१॥क्ति सुधारस घोलनो रे, रंग बन्यो हे चोलनो रे पलक न गेड्यो जाय ॥ ए श्रांकणी ॥ एक मुहरत दिन रातिनुं रे, पद मास परिमाण ॥ संवत्सर श्छा लगे रे, ते रीते पञ्चरकाण हो जिनजी॥ नक्ति ॥२॥ बारे व्रतना नियमनोरे, संदेप एहमां थाय ॥ मंत्रबले जेम वीबी, रे, फेर ते मंके जाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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