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________________ श्श्श् विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. वेगली रेलो, दश बार अजय निवार जो ॥ तिहां रात्रिनोजन करतां थका रे लो, मांजार घुम अवतार जो ॥ मने० ॥ ४ ॥ बले राहल व्यंतर नूतकां रे लो, केश कंटक जूनो विकार जो ॥ त्रण मित्रचरित्रने सांजली रे लो, करो रात्रिजोजन चोविहार जो ॥ मने० ॥ ५ ॥ गामां वहेल वेचे नामां करे रे लो, अंगारकरम वनकर्म जो ॥ सर कूप उपल खणतां थका रे लो, नवि रहे श्रावकनो धर्म जो ॥ मने० ॥ ६ ॥ विष शस्त्र वेपार दांत लाखनो रे लो, रस केश निलंबन कर्म जो ॥ शुक मेना न पालीए पांजरे रे लो, वनदाहे दहे शिवशर्म जो ॥ मने० ॥ ७ ॥ यंत्र पिला रस नवि शोषीए रे लो, तेणे करजो मया महाराज जो ॥ नहीं खोट खजाने दीजीए रे लो, शिवराज वधारी लाज जो ॥ मने० ॥ ८ ॥ राजमंत्री सुता फल पामती रे लो, व्रतसाधक बाधक टाल जो ॥ शुजवीर प्रजुना नामथी रे लो, नित्य पामीए मंगलमाल जो ॥ मने० ॥ ॥ ॥ काव्यं ॥ श्रद्धासंयुत० ॥ १ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ श्री परम० ॥ अष्टमंगलानि य० ॥ खा० ॥ ॥ ॐ ॥ इति सप्तमव्रते अष्टमाष्टमांगलिक पूजा समाप्ता ॥८॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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