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श्रीवीर विजयजीकृत छादशव्रत पूजा. २०ए राजा ने युवराज ॥ ५॥ शिवमारग व्रतनो विधि, सातमा अंग मोजार ॥पंचम थारे प्राणीने, सुणतां होय उपकार ॥ ६ ॥ तेणे कारण पूजा रचुं, अनुपम तेर प्रकार ॥ उतरवा नवजलनिधि, ए आरा बार ॥७॥ सुरतरु रूपानो करी, नील वरणमें पान ॥ रक्त वरण फल राजतां, वाम दिशे तस गण ॥७॥ तेर तेर वस्तु शुचि, मेलबीए नव रंग ॥ नर नारी कलशा जरी, तेर यो जिनअंग ॥ ए ॥ न्हवण विलेपन वासनी, माल दीप धूप फूल ॥ मंगल अदत दर्पणे, नैवेद्य ध्वज फल पूर ॥ १० ॥
॥अथ ॥ ॥ समकितारोपणे प्रथम जलपूजा प्रारंभः॥ ॥ ढाल ॥रत्नमालानी ॥प्रथम पूव दिशे ॥ए देशी॥
॥चतुर चंपापुरी, वन मांहे उतरी, सोहम जंबूने एम कहे ए ॥ वीर जिन विचरता, नवपुर श्रावता, वचन कुसुमे व्रत महमहे ए ॥१॥शांत संवेगता, वसुमती योग्यता, समकित बीज आरोप कीजे ॥ सृष्टि ब्रह्मा तणी, विष्णु शंकर धणी, एक राखे एक संहरीजे ॥२॥ गौरूप चाटणी, वाव्य अवृत
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