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________________ २०५ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. काव्यं ॥ नोगी यदा ॥१॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ श्री श्री परम ॥ धूपं य० ॥ स्वा॥ ॥इति दीदाकल्याणके षष्ठ धूपपूजा संपूर्णा ॥६॥ ॥अथ ॥ ॥ केवलज्ञानकल्याणके सप्तम दीपक पूजा प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥सारथधनघरे पारणं, प्रथम प्रजुए कीध ॥ पंच दिव्य प्रगटावीने, तास मुक्तिसुख दीध ॥१॥ जगदीपक प्रगटाववा, तप तपता रही राण ॥ तेणे दीपकनी पूजना, करता केवलनाण ॥२॥ ॥ ढाल ॥ महावीर प्रनु घर आवे ॥ ए देशी॥ ॥प्रनु पारसनाथ सिधाव्या, कादंबरी अटवी श्राव्या॥ कुंड नामे सरोवर तीरे, जमु पंकज निर्मल नीरे रे ॥ मनमोहन सुंदर मेला ॥ धन्य लोक नगर धन्य वेला रे॥मन॥१॥ए आंकणी॥ काउस्सग्गमुजा प्रजु गवे, वनहाथी तिहां एक श्रावे ॥ जल शुंढ नरी नवरावे, जिनअंगे कमल चढावे रे ॥मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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