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________________ श्रीदेवचंजीकृत स्नात्रपूजा. १३ ॥गाथा ॥ ॥जे सिद्या सिद्यति जे, सिघंसंति अणंत ॥ जसु आलंबन नविय मण, सो सेवो अरिहंत ॥४॥ ॥ढाल ॥ ॥ शिवसुख कारण जेह त्रिकाले, सम परिणामे जगत नीहाले ॥ उत्तम साधन मार्ग देखाडे, इंसादिक जसु चरण पखाले ॥ कुसुमांजलि मेलो पास जिणंदा ॥ तो० ॥ कु० ॥४॥ एम कही प्रजुना खंनाए पूजा करीए । ॥ गाथा ॥ ॥ समदिछी देस जय, साहु साहुणी सार॥आचारिज उवकाय मुणि, जो निम्मल थाधार ॥५॥ ॥ ढाल ॥ ॥चन विह संघे जे मन धागुं, मोद तणुं कारण निरधामु ॥ विविद कुसुम वर जाति गहेवी, तसु चरणे प्रणमंत वेवी ॥ कुसुमांजलि मेलो वीर जिणंदा ॥ तो ॥ कु० ॥ ५॥ एम कही प्रजुने मस्तके पूजा करीए ॥ इति पांखमी गाथा ॥ ॥ वस्तु बंद ॥ ॥ सयल जिनवर सयल जिनवर, नमिय मनरंग, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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