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________________ २०० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ तत्र॥ ॥ दीदाकल्याणके षष्ठ धूपपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा॥ ॥ वरसीदानने अवसरे, दान लीए जव्य तेह ॥ रोग हरे षट्मासनो, पामे सुंदर देह ॥ १॥ धूपघटा धरी हाथमां, दीदाश्रवसर जाण ॥ देव असंख्य मल्या तिहां, मानुं संजमगण ॥२॥ ॥ ढाल ॥ देखो गति दैवनी रे ॥ ए देशी॥ ॥त्रीश वरस घरमां वस्या रे, सुखजर वामानंद ॥ संयम रसीया जाणीने रे, मलीया चोसठ इंद॥ नमो नित्य नाथजीरे, निरखत नयनानंद ॥ नमो ॥१॥ ए आंकणी ॥ तीर्थोदक वर औषधि रे, मेलवता बहु गठ ॥ आठ जाति कलशा जरी रे, एक सहस ने पाठ ॥ नमो ॥२॥ अश्वसेन राजा धुरे रे, पागल सुर अनिषेक ॥ सुरतरुपेरे अलंकस्या रे, देव न जूले विवेक ॥ नमो॥३॥ विशाला नृप शिविका रे, बेग सिंहासन नाथ ॥ बेठी वडेरी दक्षिणे रे, पट शाटक लेश हाथ ॥ नमो ॥४॥ वाम दिशे अंब धातरी रे, पाउल धरी शणगार ॥ बत्र धरे Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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