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श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १ए सुणी, निज आतम उकार ॥ तदा आषाढी श्रावके, मूर्ति जरावी सार ॥४॥ सुविहित आचारज कने, अंजनशलाका कीध ॥ पंचकल्याणकउत्सवे, मार्नु वचनज लीध ॥५॥सिमखरूप रमण जणी, नौतम पडिमा जेह ॥ थापी पंचकल्याणके, पूजे धन्य नर तेह ॥ ६॥ कल्याणकउत्सव करी, पूरण हर्ष निमित्त ॥ नंदीसर जश् देवता, पूजे शाश्वत चैत्य ॥७॥ कल्याणक पूजन सहित, रचना रचरांतेम॥ उर्जन विषधर डोलशे, सजान मनशुंप्रेम ॥७॥ कुसुम फल अदत तणी, जल चंदन मनोहार ॥धूप दीप नैवे द्यशं, पूजा श्रष्ट प्रकार ॥ ए॥
॥ ढाल ॥ प्रथम पूरव दिशे ॥ ए देशी॥ ॥प्रथम एक पीठिका, जगमग दीपिका, थापी प्रनु पास ते, उपरे ए ॥ रजत रकेबीयो, विविध कुसुमे जरी, हाथ नर नारी धरी, उच्चरे ए॥१॥ कनकबाढूनवे, बंध जिननामनो, करीय दशमे देव, लोकवासी ॥ सकल सुरथी घणी, तेजकांति नणी, वीश सागर सुख, ते विलासी ॥२॥ देत्र दश जिनवरा, कल्याणक पांचसें, उत्सव करत सुर साथ\ ए॥ थश्य अग्रेसरी, सासय जिन तणी, रचत पूजा
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