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श्रीदेवचंद्रजीकृत स्नात्रपूजा.
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तो पद, कपूर विजय गंजीरा ॥ खिमा विजय तस सुजश विजयना, श्री शुभ विजय सवाया ॥ पंमित वीर - विजय शिष्ये जिन, जन्ममहोत्सव गाया ॥ श्र० ॥८॥ उत्कृष्ट एकसो ने सीतेर, संप्रति विचरे वीश ॥ अतीत अनागत काले अनंता, तीर्थंकर जगदीश ॥ साधारण ए कलश जे गावे, श्री शुजवीर सवाइ ॥ मंगललीला सुखजर पावे, घर घर हर्ष वधाइ ॥ श्रातम० ॥ ॥ इति पंकित श्रीवीरविजयजीकृत स्नात्रपूजा समाप्ता ॥
॥ अथ पंक्ति श्री देवचंजीकृत स्नात्रपूजा प्रारंभः ॥
( पांखमी गाथा ) ॥ ढाल पहेली ॥
॥ चउत्तिसे अतिसय जुर्ज, वचनातिसय जुत्त ॥ सो परमेसर देखी जवि, सिंहासण संपत्त ॥ १॥
॥ ढाल ॥
॥ सिंहासन बेठा जग जाए, देखी जविक जन गुण मणि खाप || जे दीठे तुज निर्मल नाथ, लहीए परम महोदय गण ॥ कुसुमांजलि मेलो आदि जि
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