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श्रीवीरविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. १७५ गुं ग्वीजे ॥३॥ चरण जानु करे, अंश शिर लाल गले, तर उदर प्रजु नव तिलक कीजे ॥४॥
॥दोहा॥ ॥ शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रमुख रंग॥ श्रात्म शीतल करवा नणी, पूजो अरिहाअंग॥१॥ ॥ गीतं ॥ राग काफी ॥ कुंबखमानी देशी ॥
॥हरिचंदन घनसारशुंरे, अव्य तिलक नव अंग॥ जिनेसर पूजीए ॥ शिवसुंदरी शिर सोहतुं रे, नावतिलक मनरंग ॥जिने॥१॥पढम चन निज थानके रे, तिलक विमल सुखकार॥ जिने ॥ गात्र विलेपन पूजना रे, जगद्गुरु जयकार ॥ जिने० ॥२॥ क्रोध अनल शीतल थये रे, रीज बनी तुज मुज ॥ जिने॥ दण क्षण पुलक प्रमोदशुं रे, अजब गति प्रनुपूज॥ जिने॥३॥ जिम जयसूर ने शुनमति रे, दंपती पद निर्वाण ॥ जिने ॥ चंदनपूजा जिन तणी रे, करतां शुन कल्याण ॥ जिने ॥४॥
॥अथ मंत्रः॥ ॥ जी श्री परम ॥ चंदनं य॥ स्वा॥ इति द्वितीय विलेपनपूजा समाप्ता ॥२॥
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