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________________ १७० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. पायो रे ॥ महा० ॥ ७ ॥ मृग बलदेव मुनि रथकारक, त्रण हुआ। एक गयो । करण करावण ने अनु मोदन, सरिखां फल निपजायो रे || महा० ॥ ८ ॥ श्री विजयसिंह सूरीश्वर केरा, सत्यविजय बुध गायो ॥ कपूर विजय तस खिमा विजय जस, विजयपरंपर ध्यायो रे ॥ महा० ॥ ए ॥ पंमित श्रीशुभ विजय सुगुरु मुज, पामी तास पसायो ॥ तास शिष्य धीरविजय सलूणा, श्रागम राग सवायो रे ॥ महा० ॥ १० ॥ तस लघु बांधव राजनगर में, मिथ्यात्वपुंज जलायो ॥ पंमित वीरविजय कविरचना, संघ सकल सुखदायो रे ॥ महा० ॥ ११ ॥ पहेलो उत्सव राजनगर में, संघ मली समुदायो ॥ करता जेम नंदीसर देवा, पूरण हर्ष सवायो रे ॥ मद्दा० ॥ १२ ॥ ॥ कलश ॥ श्रुतज्ञान अनुभव तान मंदिर, बजावत घंटो करी ॥ तव मोहपुंज समूल जलते, जांगते सग ठीकरी ॥ हम राजते जग गाजते दिन, अखय तृतीया आज || वीर विक्रम वेद मुनि वसु, चंद्र वर्ष विराजते ॥ १ ॥ ( संवत् १८७४ ) ॥ इति श्रष्टम दिवसेऽध्यापनीयमंतराय कर्मसूदनार्थमष्टमपूजाष्टकं संपूर्णम् ॥ ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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