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________________ १५७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥अथ मंत्रः॥ ॥ॐ ही श्री परम०॥ विघ्नस्थानकोछेदनाय जलं य० ॥ स्वा० ॥ इति विघ्नस्थानकोछेदनार्थं प्रथम जलपूजा समाप्ता॥१॥७॥ ॥ अथ द्वितीय चंदनपूजा प्रारंनः ॥ ॥ दोहा॥ ॥ शीतल गुण जेहमां रह्यो, शीतल प्रजुमुखरंग ॥ आत्म शीतल करवा नणी, पूजो अरिहाअंग ॥१॥ अंगविलेपन पूजना, पूजो धरी घनसार ॥ उत्तरपयमि पंचमां, दानविघन परिहार ॥२॥ ॥ढाल बीजी॥कामणगारो ए कूकडो रे॥ए देशी॥ ॥ करपी जूंमो संसारमा रे, जेम कपीला नार ॥ दान न दी, मुनिराजने रे,श्रेणिकने दरबार ॥ कल ॥१॥ करपी शास्त्र न सांजले रे, तेणे नवि पामे धर्म ॥ धर्म विना पशु प्राणीयो रे, बंडे नहीं कुकर्म ॥ क० ॥२॥ दान तणा अंतरायथी रे, दान तणो परिणाम ॥ नवि पामे उपदेशथी रे, लोक न ले तस नाम ॥क०॥३॥ कृपणता अति सांजली रे, नावे घर अणगार ॥ विश्वासी घर आवता रे, कल्पे मुनि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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