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________________ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. जी, बहु परिवारे यवीया ॥ माय जिननेजी, वांदी प्रजुने वधावीया ॥ ३॥ ט " ॥ त्रुटक ॥ ॥वधावी बोले हे रतनकुख, धारिणी तुज सुत तणो ॥ ढुं शक सोम नामे करशुं जन्म उत्सव अति घणो ॥ एम कही जिन प्रतिबिंब थापी, पंच रूपे प्रभु ग्रही ॥ देव देवी नाचे हर्ष साथे, सुरगिरि आव्या वही ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ॥ पूर्वली ॥ ॥मेरु उपरजी,पांडुक वनमें चिहुं दिशे ॥ शिला उपरजी, सिंहासन मन उल्लसे ॥ तिहां बेसीजी, शक्रे जिन खोले धया ॥ हरि त्रेसठजी, बीजा तिहां घ्यावी मख्या ॥ ५ ॥ ॥ त्रुटक ॥ ॥ मया चोसवं सुरपति तिहां, करे कलश पड जातिना ॥ मागधादि जल तीर्थ औषधि, धूप वली बहु जातिना ॥ श्रच्युतपतिए हुकम कीनो, सांजलो देवा सवे ॥ खीरजलधि गंगानीर लावो, ऊटिती जिन महोत्सवे ॥ ६ ॥ || ढाल || विवादलानी ॥ ॥ सुर सांजलीने संचरीया, मागध वरदामे चलीया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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