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________________ १३२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ ढाल पहेली ॥ सुतारीना बेटा तुने विनवू रे लो॥ मारे गरबे मांझवझी लाव जो ॥ रमतां अंगुठी विसरी रे लो ॥ ए देशी ॥ ॥ पिंझपयमि चौद पखालवा रे लो, अनिषेक करूं अरिहंत जो ॥ जस ज्ञानदिशा रलियामणी रे लो, करे ज्ञानी करमनो अंत जो ॥ ज्ञानीनी गोठडी मीठमी रे लो ॥१॥ नर देव निरय तिरिया गइ रे लो, ग विगल पणिं दि जाति जो ॥ तरु कीमो कीडी माखी थयो रे लो, शुं वखाणुं श्रापणी बुनियात जो ॥ झा ॥२॥ तनु उरल विवाहारगारे लो, तेज कर्म अनादिनां साथ जो ॥ त्रण आदि जपांगने टालवा रे लो, तुज सरिखो न मलीयो नाथ जो ॥ ज्ञा० ॥३॥णे नामे बंधन संघातनारे लो, पण बंधन ग्राहक पांच जो ॥ षट् संघयण आदि केवली रे लो, जो वज्रषजनाराच जो ॥ झा०॥४॥ संसारे षजनाराच डे रे लो, नाराच अरधनाराच जो ॥ किलि बेवकुं पंचम कालमा रे लो, गयां रत्न रह्यां तनु काच जो ॥ झा ॥५॥ समचउरस निगोह सादिए रे लो, कुबड़े वामण संगण जो ॥ ढुंमवालानुं एके न पांसरं रे लो, हवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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