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१२७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. आगे, मागुपद अणाहार ॥सांगा देतां नहीं तुज वार॥ सांग॥ तुज सरिखो दातार ॥सांग॥ नहीं को श्रा संसार ॥ सांग ॥ त्रिशला मात मल्हार ॥ सांग ॥ मुज अवगुण न विचार ॥ सांग ॥१॥ मद मदर लोजी श्रति विषयी, जीव तणो हणनार ॥ सांग ॥ महारंजी मिथ्यात ने रौजी, चोरीनो करनार ॥सां०॥ घातक जिन अणगार ॥ सां० ॥ व्रतनो नंजनहार॥ सांग॥मदिरा मांस श्राहार ॥सां॥ जोजन निशि अंधार ॥ सांग ॥ गुणी निंदानो ढाल ॥सांग॥ लेश्या धुर अधिकार ॥ सांग ॥ नारकीमां अवतार ॥ सांग ॥ श्णे लक्षण निरधार ॥ सांग ॥ अवगुणनो नहीं पार ॥ सांग ॥ पण आव्यो तुज दरबार ॥ सां॥निज रूप दीयो एक वार ॥ सांग ॥ जेम विद्याधर उपगार ॥ सांग ॥ संजीवनी बूटी चार ॥ सांग ॥ साजो कीधो नरतार ॥ सांग ॥शुनवीर वडो आधार ॥सां०॥॥ ॥ काव्यं ॥ अनशनं ॥१॥ कुमतबोध ॥२॥
॥ अथ मंत्रः॥ ॥ॐ श्री परम ॥ नरकायुबंधस्थान निवारणाय नैवेद्यं य० ॥ स्वा० ॥ इति नरकायुबंधस्थाननिवारणार्थं सप्तम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥ ७॥३ए ॥
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