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१०४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥अथ ॥ ॥ चतुर्थदिवसेऽध्यापनीयमोहनीयकर्मसूदनाथ
चतुर्थपूजाष्टक प्रारंजः ॥
॥ तत्र ॥ ॥प्रथम जलपूजा प्रारज्यते ॥
॥ दोहा ॥ ॥श्रीशुनविजय सुगुरु नमी, मात पिता सम जेह ॥ बालपणे बतलावीयो, आगम निधि गुणगेह ॥१॥ गुरु दीवो गुरु देवता, गुरुथी लहीए नाण ॥ नाण थकी जग जाणीए, मोहनीनां अहिंगण ॥२॥ कष्ट ते करवं सोहिवू, अज्ञानी पशुखेल ॥ जाणपणुं जग दोहिर्बु, ज्ञानी मोहनवेल ॥३॥ अज्ञानी श्रविधि करे, तप जप किरिया जेह ॥विराधक षट्कायनो, आवश्यकमां तेह ॥४॥ मूरखमुख श्रागम सुणी, पमीया मोहनी पास ॥ श्रागम लोपे बिहुँ जणा, नरय निगोदे वास ॥५॥ मूरखसंग अति मले, तो वसीए वनवास ॥ पंडितरां वासो वसी, बेदो मोहनो पास ॥ ६॥ कुबा मिब कषाय सवि,
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