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________________ १०२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ ढाल आमी ॥ राग वसंत धमाल ॥ नंदकुमर कैडे पड्यो, केम जरीए ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर कुमरनी वातडी, केने कहीए ॥ केने कही ए रे ने कही ॥ नवि मंदिर बेसी रहीए ॥ सुकुमाल शरीर ॥ वी० ॥ ए कणी ॥ बालपणायी लामको नृप जाव्यो, मली चोसठ इंद्रे मल्हाव्यो ॥ इंद्राणी मली दुलराव्यो, गयो रमवा काज ॥ वी० ॥ १ ॥ ala asiaei लोकनां, केम रहीए, ॥ एनी मावडीने शुं कहीए ॥ कहीए तो अदेखां थइए, नासी श्रव्यां बाल ॥ वी० ॥ २ ॥ श्रामलकी क्रीडावशे वीटाणो, मोटो जोरिंग रोष जराणो ॥ हाथे काली वीरे ताएयो, काढी नाख्यो डूर ॥ वी० ॥ ३ ॥ रूप पिशाचनुं देवता करी चलीयो, मुज पुत्रने लेइ उबलीयो ॥ वीरमुष्टिप्रहारे वलीयो, सांजली ए एम ॥ वी० ॥ ४ ॥ त्रिशला माता मोजमां एम कहेती, सखीउने उलंजा देती ॥ कण कण प्रजुनामज लेती, तेमावे बाल ॥ वी० ॥ ५ ॥ वाट जोवंतां वीरजी घेर श्राव्या, खोले बेसारी दुलराव्या ॥ माता त्रिशलाए नवराव्या, आलिंगन देत ॥ वी० ॥ ६ ॥ यौवनवय प्रभु पामतां परणावे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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