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________________ 200 विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ श्री श्री परम० ॥ अशाताबंधस्थान निवारणाय तं य० ॥ स्वा० ॥ इति शाताबंधस्थाननिवारणार्थं षष्ठाकतपूजा समाप्ता ॥ ६ ॥ २२ ॥ ॥ चप्रथ सप्तम नैवेद्यपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ न करी नैवेद्य पूजना, न धरी गुरुनी शीख ॥ लदे शाता परजवे, घर घर मागे जीख ॥ १ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ इमन रागिणी ॥ महारी सही रे समाणी ॥ ए देश ॥ ॥ तुज शासनरस अमृत मीतुं, संसारमां नवि दीव्रं रे ॥ मनमोहन स्वामी ॥ दीतुं पण नवि लागुं मीतुं, नारकडुःख तेणे दीतुं रे ॥ म० ॥ १ ॥ दशविध वेदन अतुल ते पावे, दुःखमां काल गमावे रे ॥ म० ॥ परमाधामी दुःख उपजावे, जव जावनाए जावे रे ॥ म० ॥ २ ॥ जेम विषमुक्ति तलार अवाजा, एक नगरे एक राजा रे ॥ ० ॥ शत्रुसैन्य समागम पहे - लो, गाम गाम विष भेट्यो रे । म० ॥ ३ ॥ धान्य मीठा मीठा जलमा, गोल खांग तरु फलमां रे ॥ म०॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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