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॥ श्रीवीतरागाय नमः॥ ॥अथ पुण्यप्रानाविक श्रावक श्रीलालाजीरण जितसिंघजीकृत श्रीरहदालोयणा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ सिम श्रीपरमातमा । अरिगंजन अरिहंत ॥३ ष्टदेव वंदूं सदा । जयनंजन जगवंत ॥ १॥ अरिहंत सिम समरूं सदा । आचारज उवजाय ॥ साधु सक लके चरनकू । वंदं शीश नमाय ॥२॥ शासन नायक समरीयें। नगवंत वीर जिनंद ॥ अलिय विधन दुरेंद रे। आपे परमानंद ॥ ३ ॥ अंगुठे अमृत वसे। ल ब्धि तणो नंमार । श्रीगुरु गौतम समरीयें। वंबित फल दातार ॥ ४॥ श्रीगुरु देव प्रसादसें । होत म नोरथ सि ॥ ज्युं धन वरसत वेलि तरु । फूल फल नकी १६ ॥५॥ पंचपरमेष्टी देवको। नजनपुर पही चान ॥ कर्मभरि नाजे सबी। होवे परम कल्याण ॥६॥ श्रीजिनयुगपद कमलमें । मुज मन जमर व साय ॥ कब कगे वो दिनकरू । श्रीमुख दरिसनपाय
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