________________
(२४) ॥१७॥ कहेवामें आवे नहीं। अवगुण नरियो अनं त ॥लिखवामें क्युंकर लखुं । जाणोश्रीनगवंत ॥१॥ बात कर्म प्रबल करी । जमियो जीव अनादि ॥ आठ कर्म वेदन करी। पावे मुक्ति समाधि ॥ २०॥ पथ कुपथ कारन करी। रोग हानवृद्धि थाय ॥ श्म पुण्य पाप किरिया करी। सुख दुःख जगमें पाय ॥११॥ बांध्या विण नुक्ते नहीं । विण नुक्त्यां न टाय ॥ यापही करता नोगता। आपें दूर कराय ॥ १२ ॥ सुसायासें अविवेकहूं। आंख मीच अंधियार ॥ मक डी जाल बिबाय के। फसुं बाप धिक्कार ॥ २३ ॥ सब नरिक जिम अग्नि हुँ । तपियो विषय कषाय ॥ अवबंदा आविनीत मे। धर्मी ठग कुःखदाय ॥ २४ ॥ काहा नयो घर बमके । तज्यो न मायासंग ॥ना गत्यजी जिम कांचली। विष नही तजियो अंग॥२५॥ बालस विषय कषाय वश । पारंन परिग्रह काज ॥ योनि चोराशी लख जम्यो । अब तारो महाराज ॥ ॥ २६ ॥ आतम निंदा शुभ जणी। गुणवंत वंदन ना व ॥ राग क्षेष उपशम करी। सबसें खमत खमाव ॥२७॥ पुत्र कुपात्रज में दू । अवगुण जयो अनं त ॥यादित वृक्ष विचारकें । माफकरो नगवंत ॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org