SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४ ) होय ॥ याप हणे नहीं अवरकूं । श्रापकुं हणे न कोय ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ दूजा पाप मृषावाद सो जूठ बोल्या ॥ को धवरों मानवरों मायावरों लोनवरों हास्यें करी जय वरों इत्यादि मृषा वचन बोल्या || २ || निंदा विकथा क कर्कश कठोर मरमकी भाषा बोली इत्यादिक अ नेक प्रकारें मृषावाद जूठ बोल्या बुलाया बोलतांनें नुमोद्या सोमन वचन कायायें करी ॥ मिठामि डुक्कर्ड ॥ दोहा ॥ ॥ थापन मोसा मैं किया । करी विशवास घात ॥ 1 परनारी धन चोरिया । प्रगट कह्यो नहीं जात ॥ १ ॥ ते मुजे धिक्कार धिक्कार । वारं वार मिठामि डक्कडं ॥ वो दिन धन्य होवेगा जिस दिन सर्वथा प्रकारें मृषा वादका त्याग करूंगा, सो दिन मैरा परम कल्याण रूप होवेगा ॥ २ ॥ त्रीजा पाप प्रदत्तादान है, सो अदीधी वस्तु चोरी करीने लीनी ते मोटकी चोरी लौकिक विरुद्ध, अल्प चोरी घर संबंधि नाना प्रकार का कर्त्तव्योमें उपयोग सहित तथा विना उपयोगें अदत्तादान चोरी करी कराइ करतानें अनुमोदी मन वचन कायायें करी तथा धर्म संबंधी ज्ञान, दर्शन, चा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003852
Book TitleBruhadaloyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages28
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy