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________________ (७७) ॥अथ सिहाचलमंमनषनजिनस्तवनं लिख्यते ॥ राग माढ ॥ मनरी बातां दाखां जी मारा राज हो झषनजी थाने ॥ मनरी०॥ ए श्रांकणी ॥ कुमतिना जरमाया जी म्हारा राज रे कां ॥व्यवहारि कुलमें काल अनंत गमाया जी म्हारा राज हो ॥झषनजी० ॥१॥ कर्म विवर कुब पाया जी म्हारा॥ मनुष्य जनमें श्रारज देशे आया जी ॥ म्हारा० ॥ ॥षन०॥॥ मिथ्या जन जरमाया जी॥ म्हारा०॥ कुगुरु वेषं अधिको नाच नचाया जी॥ म्हारा॥षन ॥३॥ पुण्यउदय फिर आया जी॥ म्हारा ॥ जिनवर जाषित तत्व पदारथ पाया जी॥ म्हाराण ॥षजम् ॥४॥ कुगुरु संग बटकायाजी ॥ म्हारा० ॥राजनगरमें सुगुरु वेष धराया जी॥ म्हारा०॥षन० ॥५॥ सघलां काज सरायां जी ॥ म्हारा ॥ मनडो मर्कट माने नही समजाया जी ॥ म्हारा ॥ षजम् ॥६॥ कुविषयासंग ध्यावे जी॥ म्हारा० ॥ ममता मायासाथें नाच नचावे जी॥म्हारा ॥ षजण ॥ ७॥ महिमा पूजा देखी मान जरावे जी ॥ म्हारा ॥ निरगुणीयाने गुणीजन जगमें कहावे जी ॥ म्हारा ॥षज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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