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(७३) ॥अथ सप्तम नैवेद्य पूजा प्रारंजः ॥ ॥दोहा॥शुचि निवेद्यरस सरसगुं,जरि श्रष्टापद थालाविविध जाति पकवानसें,पूजियें त्रिजुवन पाल॥१॥
॥राग तुमरी॥ जिन अर्चन सुखदाना रे ॥ नविका ॥ जिन ॥ ए आंकणी ॥ अमृति अमृत पाक पतासां, बरफी कंद विदाना रे ॥ फेणी घेवर मोदक पेठा, मगदल पेंमा सोहाना रे ॥ जि॥१॥लाखणसाइ सकरपारा, मोतीचूर मनमाना रे ॥ खाजा खुरमा खीर खांम घृत, सेव कंसार विधाना रे॥जिन ॥२॥ साटा दोगं मण्डी सबुनी, कलाकंद कलि दाना रे ॥ सीरा लापसी पूरी कचोरी, शाल दाल घृतानां रे ॥ जिन ॥३॥ इत्यादि नैवेद्य सुरंगा, पूजियें त्रिजुवन राना रे॥आतमयानंद शिव पदरंगी, संगी सदा प्राधाना रे ॥ जि ॥४॥
॥दोहा॥ अनाहार पद दीजिये, हे जिन दीनदयाल ॥ करुं अर्चन नैवेद्यशु, जर जर सुंदर थाल ॥१॥
॥अथ गीतं ॥राग जंगलो॥ महावीर तोरे समवसरणकी रे ॥ महा॥ ए देशी ॥ जिनंदा तोरे चरणकमलकी रे, जो करे अचेन नर नारी ॥ नैवेद्य नरी शुन थारी, तनमन कर शुद्ध श्रागारी ॥ जिनंदा
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