________________
(६५) मधुर ध्वनि बंद, पठन करी करे न्हवण जिनंदा ॥ मागध वरदामने परनासा, अपर तरंगिणी उदक अमंदा ॥१॥ दीरोदधि अडजाति कलशनर, न्हवण करेजिम चोशवदा॥तिम श्रावक जिन लक्तीरंगें,न्हवण करे जरे करमको कंदा ॥सुर ॥॥ विप्रवधू सोमेश्वरी नामें,जल पूजनसें लहे महानंदा ॥कारण कारज समज जलीपरें, आतमअनुजव ज्ञान अमंदा ॥३॥
॥अथ काव्यं ॥ मंत्रः॥ ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेप्राय जलं यजामहे वाहा ॥१॥ इति प्रथम पूजा॥
॥ अथ द्वितीय विलेपनपूजा प्रारंजः ॥ ॥ दोहा॥ कुमति कुवास निरासिनी, वासिनी चिदघन रूप ॥ नासिनी अमर अनघपद, नाशिनि नव जलकूप ॥१॥ सुरपति जिन अंगें करे, सरस विलेपन सार॥श्रावक तिमलेपन करे,चंदन घसि घनसार॥२॥
॥राग जिंद काफी ॥ कर रे कर रे कर रे कर रे, श्रीजिनचंद विलेपन कर रे ॥श्रीजि॥ ए श्रांकणी ॥ चेतन जान कल्याण करनकों, थान मिल्यो अवसर रे ॥ शास्त्र प्रमान जिनंदही पूजी, मन चंचल स्थिर कर रे॥ श्रीजि ॥१॥ सरस चंदन केशर हरिचंदन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org