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________________ ( ६३ ) ॥ अथ कलश ॥ ॥ रेखता ॥ जिनंद जस श्राज में गायो, गयो अघ दूर मो मनको ॥ शतठ काव्य हू करके, थुणे सब देव देवनको ॥ जि० ॥ १ ॥ तप गछ गगन रवि रूपा, हुआ विजय सिंह गुरु नूपा ॥ सत्य कर्पूर विजयराजा, क्षमा जिन उत्तमा ताजा ॥ जि० ॥ २ ॥ पद्म गुरु रूप गुण जाजा, कीर्ति कस्तूर जग बाजा ॥ मणीबुध जगतमें गाजा, मुक्ति गणि संप्रति राजा ॥ जि० ॥ ३ ॥ विजय आनंद लघु नंदा, निधि शशी अंक हे चंदा ॥ बाले नम्रमें गायो, निजातम रूप हुं पायो || जि०॥४॥ इति मुनि आत्मारामजी आनंद विजयजी कृत सत्तर जेदी पूजा संपूर्णा ॥ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ अथ न्यायांनोनिधि मुनि श्रीमद् आत्माराम आनंद विजयजी विरचित ॥ श्रष्टकारी पूजा प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥ जिनवर वाणी भारती, दारति तिमिर ज्ञान ॥ सारति कविजन कामना, वारति विघ्ननिदान ॥ १ ॥ चिदानंद घन सुरतरु, श्री शंखेश्वर पास ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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