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________________ (६१) ॥ अथ षोडश नाटक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ नाटक पूजा सोलमी,सजि सोले शपगार ॥ नाचे प्रजुनी आगलें, नव नाटक सब टार ॥॥देव कुमर कुमरीमली, नाचे एक शत आठ॥रचे संगीत सुहावना, बत्तिस विधका नाट ॥२॥रावण ने मंदोदरी, प्रजावती सुरियाज ॥ौपदी ज्ञाता अंगमें, लियो जन्मको लाल ॥ ३ ॥ टालो नव ना. टक सवी, हे जिन दीनदयाल ॥ मिल कर सुर नाटक करे, सुधर बजावे ताल ॥ ॥ढाल॥राग कल्याण ॥एक ताल ॥नाचत सुर वृंद बंद,मंगल गुन गारी ॥ए आंकणी ॥ कुमर कुमरी कर संकेत, आठ शत मिल जमरी देत ॥ मंज तार रण रणाट, घुघरु पग धारी ॥ ना० ॥१॥बाजत जिहां मृदंग ताल, धप मप धुधु मकिट धमाल ॥ रंग चंग उंग उंग, त्रौं त्रौं त्रिक तारी॥ ना० ॥३॥त ता थे थे तान लेत, मुरज रागरंग देत ॥तान मान गान जान, किट नट धुनि धारी ॥ ना० ॥३॥ तुं जिनंद शिशिर चंद, मुनिजन सब तार वृंद ॥मंगलानंद कंद, जय जय शिवचारी॥ ना॥५॥ रावण अष्टापद गिरिंद, नाच्यो सब साज संग ॥ बां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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