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( 2 ) घातियां कर्म चारे अलग्गां, जवोपग्रही चार जे बे विलग्गां ॥ जगत् पंच कल्याणकें सौख्य पामे, नमो तेह तीर्थंकरा मोदकामें ॥ ५ ॥
॥ ढाल || देशी उलालानी ॥ तीर्थपति रिहा नमुं, धर्म धुरंधर धीरो जी ॥ देशना अमृत वरसता, निजवीरज वड वीरो जी ॥ १ ॥ उलालो ॥ वर खय निर्मल ज्ञानजासन, सर्वजाव प्रकाशता ॥ निजशुद्ध श्रद्धा श्रात्मजावें, चरण थिरता वासता ॥ जिन नाम कर्म प्रजाव अतिशय, प्रातिहारज शोजता ॥ जगजंतु करुणावंत जगवत, जविक जननें थोजता ॥२॥
॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी देशी ॥ त्रीजे जव वरथानक तप करी, जेणें बांध्युं जिननाम || चोसह इंडें पूजित जे जिन, कीजें तास प्रणाम रे ॥ जविका ! सिद्धचक्रपद वंदो, जिम चिरकालें नंदो रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ जेहनें होय कल्याणक दिवसें, नरकें पण अजवायुं ॥ सकल - धिकगुण अतिशयधारी, ते जिन नमि अघ टालुं रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २ ॥ जे तिहुना समग्ग उप्पन्ना, जोग करम ही जाण ॥ लेइ दीक्षा शिक्षा दियेजनने, ते नमियें जिननाणी रे ॥०॥ सि०॥३॥ महागोप
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